विजय श्री उन्ही के गले में माला डालती है जो लोग रिस्क लेते हैं।

नियति तो यही कहती है अधिक पाना है और अधिक पाने के लिए बहुत ख़तरा उठाना पड़ता है।

कुछ लोग ख़तरा नहीं उठाते, जीवन जैसे चल रहा बस वैसे जीते चले जाते हैं।

पर जो प्रगति करना चाहते हैं ऊपर उठना चाहते हैं। जो कुछ उनके पास है उसे दाव पर लगाने से नहीं डरते।

संभावना है की हार जाए वे, कुछ न कर पाए वे।

पर ये जो कुछ कर दिखाने का प्रयास है, यही उन्हें औरों से अलग बनाता है।

भले ही वे हार जाए, पर ये संतोष उनसे कौन छीन सकता है।

जो उन्होंने कुछ अच्छा कर दिखाने का प्रयास तो किया।

आदर्श राजा वो है, जिसके तन, मन, और आत्मा तीनो दृढ़ हों।

यदि राजा तन से दुर्बल हुआ तो न संभाल पायेगा अपनी सेना को और न सीमाओं को।

यदि उसका निर्बल हुआ मन, तो पराजित होता रहेगा वो अपनी ही चिंताओं से।

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