अश्त्र और शस्त्र कितनी भी घातक क्यों ना हों, परन्तु उन्हें समय समय पर धार न लगाई जाए। तो अपनी मारक क्षमता खो बैठते हैं।

इसी प्रकार मानव मस्तिष्क और शरीर भी इस तलवार की भांति ही यदि समय समय पर मस्तिष्क के सामने उलझने ना आएं। तो वो ख़राब होने लगता है।

इसी प्रकार यदि शरीर श्रम करने का या कठिन चुनौतियों का सामना करने का अभ्यास खो दे। तो बलहीन होने लगता है।

इसलिए यदि जीवन में कठिन चुनौतियाँ आएं तो उनसे मुँह मत मोड़ो। डट कर उनका सामना करो। यदि उनसे मुँह मोड़ा तो अपने ही सुरक्षा और विकास से मुँह मोड़ बैठोगे।

ठीक ऐसा ही पालतू पशुओ के साथ भी होता है, कभी सोचा है की ऐसा क्यों होता है?

की वे अपने बंधन खोलने के बाद भी भागते नहीं ,उड़ते नहीं हमारे आस पास ही रहते हैं।

क्योंकि सबसे बड़ी परितन्त्रा दासता मानसिक होती है, यदि व्यक्ति मन से किसी का दास हो जाए तो बंधन खुलने के पश्चात भी स्वतंत्र रहने का प्रयास नहीं करता।

इसलिए कोई व्यक्ति हो किसी पर भी इतने आश्रित मत हो जाइये की मन गति करना भूल जाये।

मन को स्वंतन्त्र रखिये क्योंकि मन स्वतंत्र हुआ तो कोई नहीं आपको पारितंत्र नहीं रख सकता।

मन को स्वंतन्त्र रखिये क्योंकि मन स्वतंत्र हुआ तो कोई नहीं आपको पारितंत्र नहीं रख सकता।