अपने स्थान पर बने रहने से मनुष्य पूजा जाता है।
सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे भी नहीं कहना चाहिए।
जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगना चाहिए।
दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है।
किसी भी कार्य में पल भर का विलम्ब ना करें।
पहले निश्चय करिये फिर कार्य आरम्भ करिये।
कठोर वाणी अग्निदाह से भी अधिक तीब्र दुःख पहुँचाती है।
व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।
अपने से अधिक शक्तिशाली और सामान बल वाले से शत्रुता ना करें।
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