कहा जाता हैं की कमान से निकला हुआ तीर, बन्दूक से निकली हुई गोली, और मुँह से निकले हुए बातें कभी वापस नहीं आते। और कुछ ऐसा ही हुआ 1825 में।
जब निकोलस रसिया का राजा बना, तब वहां कई दंगे हो रहे थे। तो राजा ने उस दंगे करने वाले मुखिया को ही फांसी देने का हुक्म किया।
जब राजा के आदमियों ने उस मुखिया को तख्ते पर चढ़ाया और उसे फांसी मिलने ही वाली थी तभी फांसी से फंदे ही रस्सी टूट गई।
और वो मुझ्रिम जमीन पर गिर गया। उस ज़माने में किसी के फंदे की रस्सी टूटना ऊपर वाले का चमत्कार माना जाता था। और अक्सर मुझ्रिम को छोड़ दिया जाता था।
इसलिए राजा के आदमी तुरंत राजा के पास गए और पूरी बात बताई। राजा उसे छोड़ने ही वाला था।
तभी राजा के एक सलाहकार ने उन सिपाहियों से पूछा उस मुझ्रिम ने जमीन पर गिरने के बाद कुछ बोला था क्या।
सिपाहियों ने कहा हाँ। वो बोल रहा था की राजा एक ढंग की रस्सी नहीं बनवा सकता, राज्य क्या ख़ाक चलाएगा।
और उसी वक्त राजा ने उस मुझ्रिम को सबके सामने बेरहमी से मार दिया।
कहने की जरुरत नहीं है की रस्सी टूटने पर उसे अपना मुँह बंद कर रखा होता तो उसपे ये नौबत नहीं आती। तो इसीलिए हेमशा कम बोलें।
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