एक शाम को आचार्य चाणक्य अपने घर पर एक दिए के पास बैठ कर कुछ लिख रहे थे, तभी एक चीनी राजदूत उनसे उनसे मिलने आये,

आचार्य चाणक्य उस राजदूत को नमस्ते किय, और अपने पास रखे एक दिए को बुझा कर दूसरा दिया जलाया।

उस चीनी को लगा ये यहाँ की कोई प्रथा होगी, दोनों ने बैठ कर देर रात तक अलग अलग विषयों पर चर्चा किये।

जब वह चीनी राजदूत जाने के लिए खड़ा हुआ तो चाणक्य ने फिर से दूसरे दिए को बुझाया और पहले वाले दिए हो जला के लिखने लगे।

उस राजदूत से रहा नहीं गया, उसने दो दिए रखने का कारण पूछा।

आचार्य चाणक्य ने बहुत ही नम्रता से कहा महोदय उस पहले दिए में मेरे राज्य का तेल जल रहा था। और मैं मेरे राज्य का काम कर रहा था।

आप मुझसे निजी तौर पर मिलने आये हो और ये हमारा निजी काम है, तो उसमे मेरे देश का तेल बर्बाद नहीं होना चाहिए।

इसीलिए मैं उस चर्चा के दौरान खुद का दिया लगाया।

आचार्य चाणक्य की ईमानदारी देख कर वो चीनी राजदूत नतमस्तक हो गया।

ईमानदारी आपके बातों के साथ साथ आपके काम में भी दिखनी चाहिए। क्योंकि ईमानदार होने का मतलब है लाखों में एक होना।

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