Aksharon ke saaye Book in Hindi
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“अक्षर-जो कागजों पर उतरते रहे, वे सबके सामने हैं-इसलिए मुझे और कुछ नहीं कहना। लगता है, मैं सारी ज़िंदगी जो भी सोचती रही, लिखती रही, वह सब देवताओं को जगाने का प्रयत्न था, उन देवताओं को जो इन्सान के भीतर सो गए हैं….”
अमृता प्रीतम की ‘अक्षरों के साए’: एक आत्मीय काव्य यात्रा
अमृता प्रीतम की “अक्षरों के साए” एक गहन और संवेदनशील रचना है, जिसमें लेखिका ने अपनी भावनाओं और अनुभवों को बेहद खूबसूरती से उकेरा है। यह पुस्तक अमृता प्रीतम की आत्मा के विविध पहलुओं को छूने का प्रयास करती है, जिसमें उनके जीवन के संघर्ष, प्रेम, और उनकी आध्यात्मिक यात्रा का बखान मिलता है।
इस संग्रह में अमृता प्रीतम ने अपने विचारों को काव्यात्मक अंदाज में प्रस्तुत किया है, जो पाठकों को जीवन के गहरे अर्थों को समझने के लिए प्रेरित करते हैं। वह अपने अक्षरों के माध्यम से साए की तरह उन भावनाओं और अनुभूतियों को व्यक्त करती हैं, जो अक्सर अनकही रह जाती हैं।
प्रेम, पीड़ा, समाज की कठोरता और अपने अस्तित्व की तलाश जैसे विषयों को बहुत ही संवेदनशीलता से छुआ गया है।
“अक्षरों के साए” में अमृता प्रीतम के शब्द न केवल साहित्यिक सौंदर्य की मिसाल हैं, बल्कि उनके निजी अनुभवों और भावनात्मक यात्रा का प्रतिबिंब भी हैं। यह पुस्तक उन पाठकों के लिए एक आत्मीय संवाद की तरह है, जो जीवन के गहरे अर्थों और मानवीय संबंधों को समझना चाहते हैं।
फ़ुरसत में … अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “अक्षरों के साये”
पिछले दिनों, फुर्सत के लम्हों में मैंने अमृता प्रीतम जी की आत्मकथा “अक्षरों के साए” पढ़ी। इस आत्मकथा के प्रकाशन से बीस साल पहले, 1977 में उन्होंने “रसीदी टिकट” लिखी थी। “अक्षरों के साए” अमृता जी के आध्यात्मिक जीवन की गहन पड़ताल करती है और उनके समग्र जीवन का विवरण प्रस्तुत करती है।
यह पुस्तक उनके चिंतन और अनुभवों की उस दुनिया को खोलती है, जिसमें झांकने की उनकी असीम इच्छा झलकती है।
यह अमृता प्रीतम के जीवन का वह सार है, जो उनके साहिर लुधियानवी और इमरोज़ से गहरे और जटिल रिश्तों को बखूबी बयान करता है।
हिंदी और पंजाबी साहित्य में स्पष्टवादिता और विभाजन के दर्द को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाली अमृता प्रीतम ने अपने साहस और बेबाक लेखनी से महिला साहित्यकारों में एक अलग पहचान बनाई। उस दौर में, जब महिलाओं के लिए किसी भी क्षेत्र में खुलापन समाज के द्वारा वर्जित था, अमृता जी ने अपनी लेखनी में बेधड़क स्पष्टवादिता दिखाई
दूरदर्शन पर एक साक्षात्कार के दौरान जब उनसे उनके साहिर और इमरोज़ के रिश्तों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने वही बात दोहराई:
“दुनिया में रिश्ता एक ही होता है – तड़प का, विरह की हिचकी का, और शहनाई का, जो विरह की हिचकी में भी सुनाई देती है – यही रिश्ता साहिर से भी था, इमरोज़ से भी है…”
उनकी इस बेबाकी ने उन्हें अन्य महिला लेखिकाओं से अलग पहचान दिलाई। जिस जमाने में महिलाओं में खुलापन दुर्लभ था, अमृता जी ने निडरता के साथ अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया। यह साहस उस समय आश्चर्य का विषय था।
1963 की बात है, विज्ञान भवन में एक सेमिनार के दौरान लेखिका ममता कालिया ने अमृता प्रीतम से पूछा कि उनकी कहानियों में यह इंदरजीत कौन है। इस पर अमृता जी ने एक दुबले-पतले लड़के को सामने लाते हुए कहा, “इंदरजीत ये है, मेरा इमरोज़।”
उस समय खुले तौर पर इमरोज़ को ‘मेरा’ कहने पर लोग चकित रह गए, क्योंकि तब इतना खुलापन समाज में स्वीकृत नहीं था। इसी तरह, जब उन्होंने साहिर से अपने प्रेम को स्वीकारते हुए लिखा:
“फिर तुम्हें याद किया, हमने आग को चूम लिया, इश्क़ ज़हर का प्याला सही, मैंने एक घूंट फिर से मांग लिया…”
यह प्रेम की पराकाष्ठा थी। और जब उन्होंने इमरोज़ के बारे में लिखा:
“कलम ने आज गीतों का काफिया तोड़ दिया, मेरा इश्क यह किस मुकाम पर आया है… उठो! अपनी गागर से पानी की कटोरी दे दो, मैं राहों के हादसे, उस पानी से धो लूंगी…”
अमृता प्रीतम की रचनाएं बनावटी नहीं थीं, यही उनकी लेखनी को विशेष बनाता है। उनकी भाषा में एक सहज सरलता थी, जो उनकी रचनाओं को आम पाठकों के बीच लोकप्रिय बनाती थी।
अमृता जी जो भी लिखतीं, वह उनके दिल से निकला हुआ सच्चा अनुभव होता। यही वजह है कि उनकी लेखनी ने पाठकों के दिलों में हमेशा अपनी जगह बनाए रखी।
Thanks for Reading!❤
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