Ashtavakra Gita PDF download by Acharya Prashant
प्रस्तावना
भारतीय अद्वैत वेदान्त के रत्नों में एक अनुपम ग्रंथ है — अष्टावक्र गीता। यह कोई धार्मिक अनुष्ठान या कर्मकांड का ग्रंथ नहीं, बल्कि शुद्ध आत्मज्ञान का सीधा संदेश है।
इसमें ऋषि अष्टावक्र और मिथिला के राजा जनक के बीच गहन संवाद है, जिसमें मुक्ति, आत्मा, साक्षीभाव और अद्वैत सत्य की बात होती है।
आचार्य प्रशांत ने प्रकरण 1 और 2 की जो व्याख्या दी है, वह न केवल दार्शनिक है, बल्कि आधुनिक जीवन में भी उतनी ही प्रासंगिक है।
“मुक्ति कोई आने वाली घटना नहीं, बल्कि उसी क्षण संभव है जब आप अपनी सच्ची पहचान जान लें।” – आचार्य प्रशांत
पुस्तक का उद्देश्य
- आत्मा और अहंकार का भेद स्पष्ट करना।
- बंधन और मुक्ति के वास्तविक अर्थ को समझाना।
- यह बताना कि साक्षीभाव ही स्वतंत्रता है।
- जीवन के हर क्षण में जागरूकता लाना।
प्रकरण 1 – आत्मज्ञान
मुख्य शिक्षाएँ
- आत्मा शुद्ध और निराकार है – न जन्म लेती है, न मरती है।
- बंधनों का कारण मन की मान्यता है – जब हम शरीर और विचार को ‘मैं’ मान लेते हैं, तो बंध जाते हैं।
- ज्ञान बाहरी नहीं, आंतरिक है – सत्य बाहर खोजने से नहीं, भीतर देखने से मिलता है।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
अष्टावक्र गीता कहती है कि आप जो हैं, वही शुद्ध चेतना हैं।
समस्या यह है कि हम खुद को बदलते हुए शरीर और विचारों से जोड़ लेते हैं।
जब यह भ्रम टूटता है, तभी आत्मज्ञान होता है।
“तुम्हारा असली स्वरूप वही है जो न बदलता है, न घटता है, न बढ़ता है।” – आचार्य प्रशांत
प्रकरण 2 – मुक्ति
मुख्य शिक्षाएँ
- मुक्ति का अर्थ है – अहंकार का अंत।
- संसार को छोड़ना जरूरी नहीं – केवल आसक्ति छोड़नी है।
- साक्षीभाव में जीना ही स्वतंत्रता है – जो देखता है, वह प्रभावित नहीं होता।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
मुक्ति कोई भविष्य की मंज़िल नहीं।
वह तब ही है, जब आप समझ लेते हैं कि आप वह नहीं हैं जो बदल रहा है — आप वह हैं जो देख रहा है।
आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
- तनाव और चिंता से मुक्ति – जब हम साक्षी बनकर जीवन को देखते हैं, तो परिस्थितियाँ हमें हिला नहीं पातीं।
- संबंधों में स्वतंत्रता – आसक्ति के बिना प्रेम करना ही सच्चा संबंध है।
- आत्मसम्मान और शांति – अपनी असली पहचान जानकर हम दूसरों की राय से प्रभावित नहीं होते।
प्रेरक उद्धरण (Quotes)
- “मुक्ति पाने के लिए कोई यात्रा नहीं करनी, बस भ्रम छोड़ना है।”
- “जो जानता है कि वह शुद्ध चेतना है, उसे कोई बाँध नहीं सकता।”
- “साक्षीभाव में जीना ही सच्चा योग है।”
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📥 PDF डाउनलोड करेंFAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. क्या अष्टावक्र गीता कठिन है समझने में?
अगर सही मार्गदर्शन हो, तो यह बेहद सरल और सीधी है।
Q2. क्या मुक्ति पाने के लिए सन्यास लेना जरूरी है?
नहीं, केवल आसक्ति छोड़ना जरूरी है।
Q3. क्या यह पुस्तक शुरुआती साधकों के लिए है?
हाँ, आचार्य प्रशांत की भाषा में यह बहुत सहज हो जाती है।
Q4. क्या साक्षीभाव हर परिस्थिति में संभव है?
हाँ, अभ्यास से यह स्वाभाविक बन जाता है।
Q5. क्या PDF मुफ्त है?
हाँ, ऊपर दिए गए बटन से इसे डाउनलोड किया जा सकता है।
निष्कर्ष
“अष्टावक्र गीता” हमें यह सिखाती है कि मुक्ति कोई लंबी साधना का परिणाम नहीं, बल्कि जागृति का क्षण है।
आचार्य प्रशांत की व्याख्या इसे आधुनिक संदर्भ में समझने और जीने में मदद करती है।
जब हम साक्षीभाव में जीना सीख लेते हैं, तब जीवन एक सहज, स्वतंत्र और आनंदपूर्ण अनुभव बन जाता है।
Thanks for Reading!💖
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