Ashtavakra Gita PDF download by Acharya Prashant
“अष्टावक्र गीता” अद्वैत वेदान्त का एक अनुपम ग्रंथ है, जिसमें आत्मा, मुक्ति और साक्षीभाव के शुद्धतम स्वरूप को सरल शब्दों में प्रकट किया गया है।
इस ग्रंथ में महर्षि अष्टावक्र और मिथिला के राजा जनक का संवाद केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि सीधा अनुभव आधारित ज्ञान है।
आचार्य प्रशांत ने प्रकरण 3 से 6 में इन संवादों की आधुनिक भाषा में व्याख्या करते हुए बताया है कि मुक्ति पाने के लिए किसी जटिल साधना या समय की आवश्यकता नहीं, बल्कि वर्तमान क्षण में जागरूकता और आसक्ति का त्याग ही पर्याप्त है।
“तुम्हें मुक्ति पाने के लिए कुछ करना नहीं, बल्कि जो गलत कर रहे हो, उसे छोड़ना है।” – आचार्य प्रशांत
अष्टावक्र गीता भाष्य – प्रकरण 1 और 2
पुस्तक का उद्देश्य
- बंधन और मुक्ति के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करना।
- ज्ञान और साक्षीभाव के महत्व को समझाना।
- जीवन में आनंद और सहजता लाने के लिए अद्वैत दृष्टि विकसित करना।
प्रकरण 3 – बंधन और मुक्ति
मुख्य शिक्षाएँ
- बंधन का कारण बाहरी नहीं, भीतर का मोह है – वस्तुएं और लोग हमें बाँधते नहीं, हमारी उनसे आसक्ति हमें बाँधती है।
- सच्चा साधक परिस्थितियों में स्थिर रहता है – सुख-दुःख, लाभ-हानि में समान भाव रखना ही मुक्ति की ओर कदम है।
- इच्छा का अंत ही स्वतंत्रता है – जब मन किसी अपेक्षा में नहीं बंधता, तब वह मुक्त हो जाता है।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
अक्सर हम परिस्थितियों या लोगों को दोष देते हैं, लेकिन बंधन का असली कारण भीतर है।
यदि मन में आसक्ति न हो, तो कोई भी हमें बाँध नहीं सकता।
“जो भीतर से खाली है, उसे बाहरी चीजें बाँध नहीं सकतीं।” – आचार्य प्रशांत
प्रकरण 4 – ज्ञान का स्वभाव
मुख्य शिक्षाएँ
- ज्ञान संग्रह नहीं, जागृति है – यह किताबों का बोझ नहीं, बल्कि भीतर की आँख खोलना है।
- जागृति से ही स्वतंत्रता आती है – जब व्यक्ति सच को देख लेता है, तो भय और लालच स्वतः समाप्त हो जाते हैं।
- आत्मा का अनुभव अभी और यहीं है – यह भविष्य की कोई मंज़िल नहीं।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
ज्ञान का मतलब केवल शब्द नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष देखना है।
सच्चा ज्ञान वही है जो तुरंत जीवन में परिवर्तन लाए।
प्रकरण 5 – साक्षीभाव
मुख्य शिक्षाएँ
- साक्षी ही मुक्त है – जो देखने वाला है, वह प्रभावित नहीं होता।
- संसार एक खेल है – जब हम साक्षीभाव में होते हैं, तो जीवन बोझ नहीं लगता।
- विचार और भाव आते-जाते हैं – लेकिन साक्षी उनमें उलझता नहीं।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
हमारी असली पहचान वह है जो देखता है, न कि जो अनुभव करता है।
जब हम साक्षीभाव में जीते हैं, तब सुख-दुःख की लहरें हमें हिला नहीं पातीं।
“साक्षी को पहचानते ही सारे बंधन गिर जाते हैं।” – आचार्य प्रशांत
प्रकरण 6 – मुक्ति का आनंद
मुख्य शिक्षाएँ
- मुक्त व्यक्ति का जीवन सहज होता है – वह न किसी से डरता है, न किसी पर निर्भर रहता है।
- उसके लिए संसार खेल है – वह परिस्थितियों में उलझता नहीं, बस देखता है और सहजता से जीता है।
- प्रेम और शांति उसका स्वभाव बन जाते हैं – क्योंकि अब उसके भीतर कोई कमी नहीं है।
आचार्य प्रशांत का दृष्टिकोण:
मुक्ति का अर्थ है — बिना शर्त प्रेम करना और बिना भय जीना।
ऐसे व्यक्ति का जीवन उत्सव बन जाता है।
जीवन में इन शिक्षाओं का प्रयोग
- बंधनों से मुक्त होना – रिश्तों और परिस्थितियों को दोष देना छोड़कर भीतर की आसक्ति को पहचानें।
- जागृति लाना – रोज़ाना अपने विचारों और भावनाओं को देखें, उनमें उलझे नहीं।
- साक्षीभाव का अभ्यास – ध्यान के समय ही नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के कार्यों में भी खुद को देखने वाला मानें।
- मुक्ति का अनुभव करना – मुक्ति भविष्य का लक्ष्य नहीं, बल्कि वर्तमान का अनुभव है।
प्रेरक उद्धरण (Quotes)
- “मुक्ति पाने के लिए समय नहीं, सजगता चाहिए।”
- “बंधन बाहर नहीं, भीतर की आदतों में है।”
- “साक्षीभाव में जीना ही अद्वैत है।”
- “मुक्त जीवन ही प्रेमपूर्ण जीवन है।”
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FAQs – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
Q1. क्या बंधन तोड़ना कठिन है?
नहीं, बस आसक्ति छोड़नी है और यह तुरंत संभव है।
Q2. क्या मुक्ति जीवन से भागने में है?
नहीं, यह जीवन को पूर्ण रूप से जीने में है।
Q3. क्या साक्षीभाव का अभ्यास शुरुआती लोग भी कर सकते हैं?
हाँ, यह हर किसी के लिए संभव है।
Q4. क्या मुक्ति पाने के लिए ध्यान जरूरी है?
ध्यान मदद करता है, लेकिन सजगता हर क्षण जरूरी है।
Q5. क्या PDF मुफ्त है?
हाँ, ऊपर दिए गए बटन से आप इसे डाउनलोड कर सकते हैं।
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