हमारे जीवन में ध्यान का महत्व अपार है। महात्मा बुद्ध के एक प्रेरक प्रसंग से जुड़ी एक कहानी हमें यह बात समझाती है कि सही ध्यान और समर्पण से जीवन को कैसे सफलता की ऊंचाइयों तक ले जाया जा सकता है।
कहानी: ध्यान हमेशा लक्ष्य पर केंद्रित रखें!
Gautam Buddha’s Moral Story in Hindi
एक बार की बात है, महात्मा बुद्ध अपने शिष्यों के साथ दूसरे नगर में प्रवचन के लिए जा रहे थे। काफी दूर चलने के बाद सभी शिष्य थक गए, और वे फिर महात्मा जी से बोले, “गुरुजी, यदि आपकी आज्ञा हो तो कुछ देर कहीं रुक कर विश्राम कर ले।”
महात्मा जी बोले, “वत्स, कहीं उचित स्थान देख कर हम वही विश्राम करेंगे।”
फिर कुछ देर चलने के बाद उन्हें एक खेत दिखाई दिया। उस खेत पर एक बुजर्ग और एक छोटा लड़का खेत जोतने का काम कर रहे थे। महात्मा जी ने उस बुजुर्ग से पूछा, “हे मान्यवर, हम कुछ देर यहां विश्राम कर सकते हैं?”
तब उस बुजुर्ग ने महात्मा जी को पहचान लिया और हाथ जोड़ कर उनको प्रणाम किया। और कहा, “है, महात्मा जी, ये तो हमारी खुशनसीबी है कि आप हमारे खेत पर पधारे। आप वहां उस पेड़ के नीचे विश्राम करें, मैं आपके जलपान का प्रबंध करता हूं।”
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तब महात्मा जी बोले, “हे मान्यवर, आप अपना कार्य पूर्ण करें, हमको कुछ नहीं चाहिए।”
फिर भी वह बुजुर्ग नहीं माने और महात्मा जी को कुछ फल तोड़ कर और उन्हें जल देकर वह बुजुर्ग अपने काम में व्यस्त हो गए।
तब सभी शिष्यों और महात्मा जी ने फल और जल ग्रहण किया और सभी वही विश्राम करने लगे।
फिर वह बुजुर्ग निरंतर अपना कार्य करते रहे, तभी उस बुजुर्ग के पोता काम करते करते थक गया, और मन में सोचने लगा कि अभी तो आधा खेत ही जुता है, और आधा खेत अभी बाकी है। अब मैं कुछ देर विश्राम कर लूं, फिर आधा खेत जोतूंगा।
ऐसा सोच कर वह एक पेड़ के नीचे जाकर विश्राम करने लगा। पेड़ की ठंडी ठंडी हवा से उस बुजुर्ग के पोते की आंख लग गई, लेकिन वह बुजुर्ग निरंतर अपने कार्य में लगे रहे। फिर जब उस बुजुर्ग का पोता अपनी नींद से जागा, तब तक उस बुजुर्ग ने सारा खेत जोत लिया। वह नजारा महात्मा जी और उनके शिष्यों ने देखा।
तभी महात्मा जी से उनके शिष्य बोले, “हे गुरुजी, इन बुजुर्ग की उम्र इतनी अधिक होने के बावजूद भी बिना विश्राम किए ही उन्होंने सारा खेत जोत लिया, और दूसरी ओर तुम्हारे पोते की उम्र उनसे छोटी होने के बावजूद भी आधा खेत जोत कर विश्राम करने चला गया। ऐसा जोश सराहनीय है, उन बुजुर्ग में ऐसा जोश देखते ही बन रहा है।”
और वही उनका पोता आलस्य में आकर विश्राम करने चला गया। तभी महात्मा जी बोले, “हे वत्स, तुम्हारा कहना उचित है, पर ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस बुजुर्ग का ध्यान केवल खेत जोतने पर था, ना कि शरीर की थकावट पर। वही दूसरी ओर उस बालक का ध्यान खेत की जुताई पर ना हो कर शरीर की थकावट पर था।
इससे हमे यह शिक्षा मिलती है कि अपना ध्यान हमेशा लक्ष्य पर केंद्रित रखें, और अन्य कहीं नहीं। यह कह कर महात्मा जी और उनके शिष्य उस बुजुर्ग का अभिवादन करके अपने मार्ग पर चल दिए।
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निष्कर्ष:
इस कहानी के माध्यम से हमने देखा कि एक सफल जीवन के लिए ध्यान और समर्पण का महत्व क्या है। यह हमें याद दिलाता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें समय-समय पर विश्राम करना जरूरी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें अपने कामों में आलस्यपूर्वक ढलने की इजाजत है। सही ध्यान और समर्पण से हम समस्त चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं।
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