यह कहानी एक समय की है, जब एक खूंखार डाकू ने अपने आत्मविश्वास की परीक्षा में महात्मा बुद्ध के साथ मुकाबला किया। इस आदर्शवादी और धार्मिक संग्राम में, दो व्यक्तित्वों के भीतरी ताकतों का मुकाबला होने वाला है, जिसने उनके सोच, व्यवहार और जीवन को प्रभावित किया।
इस अनोखे संग्राम में, क्या महात्मा बुद्ध के आत्मविश्वास और प्रेम का आदर्श खूंखार डाकू को पराजित कर सकेगा? आइए, हम इस उत्कृष्ट युद्ध के बारे में अधिक जानते हैं।
A Short Moral Story in Hindi
अंगुलिमाल और गौतम बुद्ध की कहानी
एक समय की बात है महात्मा बुद्ध बिहार के पास एक राज्य में भ्रमण पर जा रहे थे तभी वहा के एक गांव में वह रात गुजरने के लिए रुक गए और फिर वहाँ के लोग खूंखार डाकू अँगुलीमाल के बारे में बात करने लगते है तभी महात्मा जी ने उन आदमियों को बुलाकर पूछा की भाई आप लोग किस की बात कर रहे हो?
तब आदमियों ने बताया की महात्मा जी हम डाकू अँगुलीमाल के बार्रे में बात कर रहे है तब महात्मा जी ने पूछा अँगुलीमाल! कौन है ये? तब उत्तर में उन आदमियों ने कहा “
महात्मा जी वह बहुत ही खूंखार डाकू है, जिसने अपनी देहशत से लोगो को परेशान कर रखा है, वह डाकू उसके इलाके में जाने वाले राहगीरों को लुटता है और यही पर उसका खूंखार पन खत्म नहीं होता वह लोगो के उँगलियों को काट लेता है और फिर उनकी माला बनाकर अपने गले में पहनता है।
“तब महात्मा जी ने बड़ी शालीनता से पूछा की अँगुलीमाल डाकू मिलता कहा है”, तब उन लोगो ने जवाब दिया की वह यहाँ से कुछ दुरी पर चलकर एक घनघोर जंगल है, वही उस अँगुलीमाल डाकू का बसेरा है।
तब महात्मा जी ने कहा ठीक है और अपने शिष्यों को बोला की तुम सब अब विश्राम करो कल सुबह होते ही हमे जल्दी निकलना है।
सुबह हुई और महात्मा जी ने अपने शिष्यों को कहा, की चलो शिष्यों अब हमे उस जंगल की और प्रस्थान करना है, तब सभी शिष्य डर गए! और बोले जंगल की तरफ लेकिन गुरु जी वहाँ तो डाकू अँगुलीमाल का वास है, अगर हम वहा जायेंगे, तो वह हमे मार डालेगा और हमारी आंगुलियां काटकर उनकी माला बना कर धारण करेगा।
तब महात्मा जी बोले की शिष्यों कभी भी किसी परिस्थति में डरना नहीं चाहिए लेकिन कोई बात नहीं अगर तुम लोग नहीं जाना चाहते तो कोई बात नहीं में तुमको वहाँ जाने के लिए बाध्य नहीं करूंगा जैसी तुम्हारी इच्छा।
महात्मा जी जंगल की तरफ प्रस्थान करने के लिए ज्यों ही प्रस्तुत हुए गांव के लोगो और शिष्यों ने उन्हें बहुत रोका लेकिन वह नहीं माने और जंगल की और चल पड़े।
और फिर अंतत: वह जंगल पहुंच गए जहाँ कि अँगुलीमाल रहता था, जब उस डाकू की नज़र महात्मा जी पर पड़ी, तब वह महात्मा जी को बड़े आश्चर्यजनक तरीके से देखने लगा,और सोचने लगा की इस जंगल में आदमी साथ मिलकर भी नहीं आते और यह, यहाँ अकेला चला आया तब उसने महात्मा जी से पूछा की कौन हो तुम ?
“महात्मा जी ने कहा में एक राहगीर हूँ”
अँगुलीमाल ने कहा भाई तुम यहाँ अकेले आ गए हो तुम्हे पता नहीं मेँ कौन हूँ तब महात्मा जी ने जवाब दिया की हां तुम भी मेरे ही तरह एक इंसान हो “, तब अंगलीमाल ने कहा की लगता है तुम इस जगह नए आये हो तुम्हे शायद मेरा नाम नहीं पता उसने बड़े शालीनता से कहा।
महात्मा जी ने कहा मुझे तुम्हारे बारे में गांव वालो ने बताया था
तब अँगुलीमाल ने कहा फिर भी तुम यहाँ चले आये तुम्हे मुझसे डर नहीं लग रहा क्या ?
तब महात्मा जी ने कहा की डर कैसा, मुझे तुमसे क्यों डर लगेगा ?
तब वह डाकू गुस्से से लाल पीला होकर महात्मा जी को घूरने लगा और कहने लगा की तुम्हे नहीं पता की में कितना ताकतवर हूँ, मेरे डर के कारण यहाँ अच्छे से अच्छे दिग्गज आने की हिम्मत नहीं करते और तुम यहाँ मरने चले आये हो ।
तब महात्मा जी ने कहा ताकतवर में तो तुम्हे ताकतवार नहीं मानता तब तो गुस्से से लाल आँखें करके वह डाकू महात्मा जी को देखने लगा।
तब अँगुलीमाल ने कहा की तुम्हे नहीं पता की में कितने आदमियों को मार चुका हूँ मेरे गले में यह माला देख रहे हो मेने उन आदमियों को सिर्फ लुटता नहीं हूँ बल्कि उनके हाथ की उँगलियाँ को काटकर अपनी माला में पिरो लेता हूँ।
यह कहते हुए अंगुलिमाल जोर-जोर से हॅसने लगा महात्मा जी मंद मुस्कान के साथ हसने लगे तब वह डाकू आश्चर्य से महात्मा जी को देखने लगा और सोचने लगा की अरे यह कैसा इंसान हे मुझसे डरने कीवजाये यह हस रहा है।
तब अँगुलीमाल ने कहा की लगता हैं तुम्हारा मानसिक संतुलन ठीक नहीं है, यह सुनकर तुम्हे सदमा लग गया है।
महात्मा जी ने कहा मुझे कोई भी सदमा नहीं लगा और न मेरा मानसिक संतुलन ख़राब है।
अंगलीमाल ने कहा तुम्हे मुझ जैसे ताकतवर डाकू से डर नहीं लग रहा और यह सब सुनकर भी तुम मेरे सामने खड़े हो यह उससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात है।
तब महात्मा जी ने कहा कौन ताकतवार? तुम तो मुझे सबसे ज्यादा डरपोक लगते हो इतना सुनते ही अँगुलीमाल क्रोध से तिलमिला गया और उसने अपनी तलवार निकाल ली और महात्मा जी के गले पर लगा दी।
तब महात्मा जी ने कहा मेरी बात तो सुनो भाई उसने बोला जल्दी बोल अब में तेरे मुख से और कुछ नहीं सुनना चाहता अरे भाई अगर तुम सच में ताकतवर हो तो तुम सिद्ध करो तब में मानूंगा।
अँगुलीमाल ने कहा अच्छा बता मुझे क्या करना होगा ? अपने ताकतवार सिद्ध होने के लिए।
तब महात्मा जी ने कहा की तुम्हे वो पेड़ दिख रहा है।
अँगुलीमाल ने कहा हाँ दिख रहा है तो क्या करना है उस पेड़ को गिराना है।
महात्मा जी ने कहा नहीं तुम्हे सिर्फ उस पेड़ से 10 पत्ते तोड़कर लाने है, इतना सुनकर अँगुलीमाल जोर-जोर से हॅसने लगा।
और हॅसते-हॅसते पेड़ से पत्ते तोड़ लाया और महात्मा जी को देने लगा।
महात्मा जी ने कहा जाओ अब यह पत्ते उस पेड़ पर वापिस जोड़ कर आओ, तब अँगुलीमाल हैरानी से महात्मा जी को देखने लगा तब महात्मा जी ने कहा क्यों क्या हुआ ? जाओ जोड़ कर आओ इन पत्तो को “
तब अँगुलीमाल बोला की यह कैसे हो सकता है की एक बार कोई चीज टूट जाये वह वापिस कैसे जुड़ सकती है ?
तब महात्मा जी बोले क्यों तुम तो बहुत ताकतवार हो? न फिर इन पत्तो को तुम क्यों नहीं जोड़ सकते ?
मैं तो तुम्हे जब ही ताकतवर मानूंगा जब की तुम यह पत्ते वापस पेड़ से जोड़ दोगे नहीं तो तुम डरपोक हो मेरी नज़र में, असली ताकतवार तो वह होता है जो की टूटी हुए चीजे जोड़ दे जो चीजे तोड़े वो कैसा ताकतवार ?
यह सुनकर अँगुलीमाल महात्मा जी के चरणों में गिर गया और उनसे कहने लगा की महाराज जी मुझे क्षमा करे सचमुच मुझे आज एहसास हुआ की में कितना बड़ा पापी हूँ।
मेने कितने निर्दोष लोगो का खून बहाया और उन्हें लुटा।
महात्मा जी बोले की तुम्हे अपने पापो का एहसास हुआ यह बहुत बड़ी बात है अगर तुम्हे सचमुच अपने किये पर पछतावा है तो आज से सच्चाई और अच्छे राह पर चलो दीनो की मदद करो और अपनी ताकत का इस्तेमाल जरुरतमंदो की रक्षा में करो तब से अँगुलीमाल अच्छे रास्ते पर चलने लगा और सबकी मदद करने लगा।
कहानी का निष्कर्ष:
इस कहानी में हम ने देखा कि खूंखार डाकू और महात्मा बुद्ध की आत्मविश्वास भरी मुकाबले के बीच एक अंतर था। जबकि डाकू आत्मविश्वास की कमी के कारण हार गया, महात्मा बुद्ध ने अपनी आत्मशक्ति को पहचाना और सच्चे आत्मविश्वास की प्राप्ति की।
हमें यह याद रखना चाहिए कि जीवन की हर मुश्किल से लड़ने के लिए आत्मविश्वास हमारी महत्वपूर्ण उपकरण होती है।
हमारी जीत या हार आत्मविश्वास पर निर्भर करती है, और जब हम सही तरीके से आत्मविश्वास को समझते हैं और उसे विकसित करते हैं, तो हम सचमुच अपारतंत्री हो सकते हैं। तो अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो अपने परिवार और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।
FAQs Related to Gautam Buddha Story
A: आत्मविश्वास की रक्षा के लिए ध्यान और मनन, सकारात्मक सोच, अभियान्त्रिकीकरण, स्वसंयम और स्वाधीनता की प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
A: महात्मा बुद्ध के आत्मविश्वास के मूल तत्वों में स्वसंयम, प्रशासन और सहभागिता का महत्वपूर्ण स्थान है।
A: आत्मविश्वास की कमी व्यक्ति को आत्मसंदेह, कार्यक्षमता में कमी, निराशा, संघर्ष, और समाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में प्रभावित कर सकती है।