शिष्यों के साथ नगर भ्रमण करते हुए महात्मा बुद्ध जी की प्यास की कहानी एक अद्भुत उदाहरण है जो हमें शांत मन से काम करने की महत्वपूर्ण प्रेरणा देती है। महात्मा जी की तड़प और उनके शिष्यों की कोशिशें पानी की तलाश में एक दूसरे से अलग-थलग दिखती हैं, लेकिन उत्कृष्टता सिर्फ शांत मन से काम करने में ही स्थित है।
इस कहानी के माध्यम से हम जानते हैं कि जब हम शांत होकर और धैर्य से काम करते हैं, तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं।
प्रेरणादायक मोटिवेशनल कहानी–
एक बार की बात है महात्मा बुद्ध जी अपने शिष्यों के साथ नगर भ्रमण पर निकले हुए थे |
जब वह लोग काफी दूर चल कर आ गए, और गर्मी भी बहुत हो रही थी, गर्मी के कारण महात्मा जी को बहुत जोर से प्यास लगने लगी |
तब महात्मा जी ने अपने एक शिष्य से बोले वत्स हमे बहुत तेज़ प्यास लग रही है क्या तुम हमारे लिए पानी ला सकते हो ?
तभी शिष्य बोला क्यों नहीं गुरु जी आप वहाँ पेड़ के नीचे थोड़ा विश्राम कर ले में अभी आपके लिए पानी लेकर आता हूँ |
यह कहकर वह शिष्य पानी की खोज इधर उधर करने लगा लेकिन उसे आस पास कही भी पानी का स्रोत नहीं दिखा |
कुछ दूरी पर उसे एक पानी का स्रोत दिखा, वह जैसे ही उस जलाशय से पानी लेने के लिए गया तब ही उसने देखा की वहाँ कई लोग उस जलाशय में कपडे धो रहे थे, कुछ स्नान कर रहे थे,
और फिर उसने देखा की एक बैलगाड़ी सवार उस जलाशय को पार कर गया, जिससे की जलाशय का पानी बहुत ही गन्दा हो गया क्योकि उससे जलाशय की कीचड़ पानी में घुल गयी और पानी मैला हो गया |
तब उसने सोचा की इतना गंदा पानी में गुरूजी के लिए कैसे ले जाऊ इससे तो अच्छा है की में खाली हाथ ही चला जाऊँ |
फिर उसने मन में सोचा की गुरूजी पूछेंगे तो में क्या बोलूँगा? तब उसने कहा की गुरु जी पूछेंगे तो कह दूंगा की गुरु जी यहाँ तो दूर – दूर तक कही भी कोई पानी का स्रोत नहीं है |
फिर थोड़ी देर बाद वह शिष्य गुरु जी के समीप आया और फिर महात्मा जी ने उससे बड़े प्रेम से पूछा की वत्स ले आये पानी ?
तब उस शिष्य ने उत्तर में कहा की, गुरु जी मुझे क्षमा करे, में पानी की तलाश में बहुत दूर तक गया लेकिन मुझे पानी कही भी नहीं मिला |
महात्मा जी बोले की कोई बात नहीं वत्स तुम थक गए होंगे थोड़ा विश्राम कर लो, लेकिन गर्मी भी बहुत थी फिर महात्मा जी प्यास से व्याकुल होने लगे |
तब उनके दूसरे शिष्य ने कहा की गुरु जी मैं आपके लिए पानी लेकर आता हूँ |
गुरु जी ने कहा ठीक है, शिष्य बोला की गुरु जी तब तक आप उस पेड़ के नीचे थोड़ा विश्राम कर ले |
यह कहकर वह शिष्य पानी की खोज में निकल पड़ा काफी देर पानी की खोज के बाद उसे वही जलाशय दिखा जहाँ पहला शिष्य पानी की खोज में गया था |
तब उसने भी वही सब देखा जो की पहले शिष्य ने देखा था, की लोग वहाँ कपडे धो रहे थे, नहा रहे थे, जिससे की पानी काफी मैला हो गया था,
फिर वह शिष्य कुछ सोचकर कुछ देर वही बैठा रहा, और फिर वह पानी एक पात्र में लेकर गुरु जी के समीप आकर बोला, की यह लीजिये गुरूजी पानी तब गुरु जी ने, पानी पीया और फिर दूसरे शिष्य से पूछा,की वत्स तुम तो कह रहे थे, की तुम्हे दूर दूर तक कही भी पानी नहीं दिखाई दिया, फिर यह मेरे लिए कहाँ से पानी ले आया?|
तब शिष्य ने उत्तर में कहा की गुरु जी मुझे एक जलाशय मिला था, लेकिन वहाँ का पानी बहुत ही गन्दा था वह गंदा पानी में आपके लिए कैसे लाता?
तब उन्होंने अपने दूसरे शिष्य से पूछा की वत्स तुम पानी कहाँ से लाये हो?
उत्तर में उस शिष्य ने कहा की गुरु जी में उसी जलाशय से पानी लाया हूँ, तब महात्मा जी बोले की यह पानी तो गंदा नहीं है अगर तुम उसी जलाशय से पानी लाये हो तब उत्तर में उस शिष्य ने कहा की हाँ गुरु जी क्योकि जब सब वहाँ से कपडे धोकर और स्नान कर के चले गए तब मेने पानी की गंदगी नीचे बैठ जाने का इंतज़ार किया और जब पानी साफ़ हो गया तब में पानी लेकर आ गया |
तब महात्मा जी बोले की शाबाश वत्स, अगर कोई भी काम शांत हो कर किया जाता है तो वह काम जरूर ही सफल होता है |
तो दोस्तों हमे इस कहानी से यह प्रेरणा मिलती है, की कोई भी काम शांत मन से किया जाये, तो हमे उस कार्य में जरूर सफलता मिलती है |
कहानी का निष्कर्ष:
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि कोई भी काम शांत मन से किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है। महात्मा बुद्ध जी के शिष्यों ने अपनी धैर्य और संयम से गंदे पानी को साफ करके गुरुजी को प्यास बुझाने का काम किया।
यह कहानी हमें यह बताती है कि सफलता पाने के लिए हमें संयम, धैर्य और सहनशीलता की आवश्यकता होती है। हमारे कर्मों को शांत मन से और पूरी संवेदनशीलता के साथ करने से हम सफलता की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं।