यह कहानी हर एक उस भारतीय लड़की की है, जो अपने जीवन में समाज से परे जाकर कुछ अलग और बड़ा करना चाहती हैं। मेरा आपके इस संघर्ष को सलाम! अगर आप इनकी तरह संघर्ष कर रहें तो आपको मेरा सलाम। ऐसे ही संघर्ष करते रहिये सफलता एक दिन आपको जरूर मिलेगी।
“क्यों डरे जिंदगी में क्या होगा, कुछ न होगा तो तजुर्बा होगा।” – विकास दिव्यकीर्ति
The Struggle of a Poor Farmer’s Daughter to Become an IAS Officer
गरीब किसान की बेटी का आईएएस (IAS) बनने का संघर्ष
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव बेलापुर में अंतिमा नाम की लड़की जन्मी थी। उसका बचपन बहुत संघर्षों से भरा था। उसके पिता रामस्वरूप, एक छोटे किसान थे, जो कड़ी मेहनत करके मुश्किल से अपने परिवार का गुज़ारा करते थे। खेतों में दिन-रात मेहनत करने के बावजूद, आमदनी इतनी कम थी कि घर का खर्च चलाना भी मुश्किल होता था।
संघर्ष की शुरुआत
अंतिमा बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज थी। लेकिन गाँव की परंपराओं के अनुसार, लड़कियों की पढ़ाई को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था। अक्सर लोग उसके माता-पिता से कहते,
“लड़की को इतना पढ़ाने का क्या फायदा? आखिर में तो चूल्हा-चौका ही करना है!”
परंतु अंतिमा के पिता ने हमेशा उसका साथ दिया। माँ-बाप के सपोर्ट से उसने दसवीं कक्षा में टॉप किया, लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाना मुश्किल था। उसके पिता ने अपनी एकमात्र भैंस बेच दी ताकि वह इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर सके।
सपनों की उड़ान
एक दिन, गाँव में एक आईएएस अधिकारी का दौरा हुआ। उसे देखकर अंतिमा की आँखों में चमक आ गई। उसने ठान लिया कि वह भी आईएएस बनेगी और समाज में बदलाव लाएगी। लेकिन रास्ता आसान नहीं था—न तो उसके पास कोचिंग के पैसे थे और न ही कोई गाइडेंस।
सामाजिक बाधाएँ
जब अंतिमा ने यूपीएससी की तैयारी की बात घर में कही, तो गाँव वालों ने ताने कसने शुरू कर दिए,
“लड़की के लिए आईएएस की तैयारी? यह हमारे गाँव में पहले कभी नहीं हुआ!”
रिश्तेदारों ने भी माता-पिता को समझाया कि वह अब शादी के लायक हो गई है, लेकिन अंतिमा ने हार नहीं मानी।
रातों की मेहनत और संघर्ष
गाँव में कोचिंग सेंटर नहीं था, तो उसने सरकारी स्कूल की लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ना शुरू कर दिया। दिन में खेतों में अपने पिता का हाथ बंटाती और रात में स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई करती। कभी-कभी पेट खाली होता, लेकिन उसकी भूख ज्ञान की थी, न कि सिर्फ रोटी की।
पहली हार, फिर सफलता
पहली बार में यूपीएससी की परीक्षा में वह असफल हो गई। यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका था। पिता की आँखों में आँसू थे, लेकिन उन्होंने कहा,
“असली हार वही होती है जो हमें रोक दे।”
इस बार अंतिमा ने और अधिक मेहनत की। गाँव की दूसरी लड़कियों को भी प्रेरित किया और उनके लिए भी एक छोटी लाइब्रेरी खोली।
सपना पूरा हुआ
आखिरकार, कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद अंतिमा ने तीसरे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली और आईएएस अधिकारी बनी! जब वह पहली बार अपने गाँव आई, तो वही लोग जो उसका मजाक उड़ाते थे, अब गर्व से उसका स्वागत कर रहे थे।
उसने अपने गाँव में लड़कियों के लिए एक स्कूल खोला और माता-पिता को जागरूक किया कि शिक्षा ही असली बदलाव ला सकती है।
निष्कर्ष:
अंतिमा की कहानी यह साबित करती है कि अगर दृढ़ निश्चय और मेहनत हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती। उसने दिखाया कि लड़की होना कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत है!
“संघर्ष जितना कठिन होगा, सफलता उतनी ही शानदार होगी!”
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