Kavita Yudh Nahi Jinke Jeevan Mein Ve Bhi Bahut abhage Honge

अर्जुन सिसोदिया: वायरल कविता ‘युद्ध नहीं जिनके जीवन में वे भी बहुत अभागे होंगे’

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परिचय

भारतीय साहित्य और कविताओं की परंपरा हमेशा से हमें जीवन के गहरे सत्य और संघर्षों से परिचित कराती रही है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कविता अर्जुन सिसोदिया की वायरल रचना युद्ध नहीं जिनके जीवन में वे भी बहुत अभागे होंगे आज सोशल मीडिया और पाठकों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।

यह कविता हमें बताती है कि जीवन केवल आराम और सुख का नाम नहीं, बल्कि संघर्ष और युद्ध का दूसरा नाम है। जो लोग अपने जीवन में युद्ध का सामना नहीं करते, वे वास्तव में बहुत अभागे होते हैं। हर इंसान को अपने-अपने स्तर पर सच, धर्म और कर्तव्य की खातिर कठिनाइयों से जूझना पड़ता है।

आइए पढ़ते हैं यह प्रेरणादायक कविता, जो हमें त्याग, संघर्ष और आत्मबल का महत्व समझाती है।


कविता: युद्ध नहीं जिनके जीवन में

✍️ कवि – अर्जुन सिसोदिया

युद्ध नहीं जिनके जीवन में
वे भी बहुत अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा
या फिर रण से भागे होंगे
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है
जब तक तम से नहीं लड़ेगा
दिनकर नहीं प्रभा बाँटेगा
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा

कभी दहकती ज्वाला के बिन
कुंदन भला बना है सोना
बिना घिसे मेहंदी ने बोलो
कब पाया है रंग सलौना
जीवन के पथ के राही को
क्षण भर भी विश्राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।

अपना अपना युद्ध सभी को
हर युग में लड़ना पड़ता है
और समय के शिलालेख पर
खुद को खुद गढ़ना पड़ता है
सच की खातिर हरिश्चंद्र को
सकुटुम्ब बिक जाना पड़ता
और स्वयं काशी में जाकर
अपना मोल लगाना पड़ता

दासी बनकरके भरती है
पानी पटरानी पनघट में
और खड़ा सम्राट वचन के
कारण काशी के मरघट में
ये अनवरत लड़ा जाता है
होता युद्ध विराम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।

हर रिश्ते की कुछ कीमत है
जिसका मोल चुकाना पड़ता
और प्राण पण से जीवन का
हर अनुबंध निभाना पड़ता
सच ने मार्ग त्याग का देखा
झूठ रहा सुख का अभिलाषी
दशरथ मिटे वचन की खातिर
राम जिये होकर वनवासी

पावक पथ से गुजरीं सीता
रही समय की ऐसी इच्छा
देनी पड़ी नियति के कारण
सीता को भी अग्नि परीक्षा
वन को गईं पुनः वैदेही
निरपराध ही सुनो अकारण
जीतीं रहीं उम्रभर बनकर
त्याग और संघर्ष उदाहरण

लिए गर्भ में निज पुत्रों को
वन का कष्ट स्वयं ही झेला
खुद के बल पर लड़ा सिया ने
जीवन का संग्राम अकेला
धनुष तोड़ कर जो लाए थे
अब वो संग में राम नहीं है
कौन भला स्वीकार करेगा
जीवन एक संग्राम नहीं है।।

निष्कर्ष

अर्जुन सिसोदिया की यह कविता सिर्फ शब्दों का मेल नहीं है, बल्कि एक गहरी जीवन दर्शन है। यह हमें याद दिलाती है कि हर व्यक्ति को अपना युद्ध लड़ना पड़ता है, चाहे वह रिश्तों में हो, कर्तव्यों में हो या फिर सत्य की रक्षा के लिए।

जीवन का वास्तविक सौंदर्य संघर्षों से गुजरने में ही है। जैसे सोना तपकर कुंदन बनता है और मेहंदी घिसकर रंग देती है, वैसे ही इंसान कठिनाइयों से निखरता है। यही कारण है कि यह कविता आज लाखों लोगों के दिलों को छू रही है और प्रेरणा का स्रोत बन रही है।


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